सोनचिड़िया (Sonchiriya) Movie Review

झलक: सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput)
सुशांत (Sushant) की आंखों में आप शालीनता, विनम्रता एक साथ देख सकते हैं।
चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ आंखों में हल्का सा पानी आपके दिल में उतर जाता होगा।
संतुलित शरीर से उनके श्रम का अंदाजा लगाया जा सकता है। सेल्फमेड सुशांत ( self-made-Sushant) द्वारा चुनी गई फिल्मों से उनके मानसिक स्तर का अंदाजा आप लगा सकते हैं।
सबको मालूम है कि भारतीय फिल्मों का यहां के रहन सहन, स्वभाव और अर्थव्यवस्था पर कितना प्रभाव पड़ता है ।
तभी तो, किसी लोकप्रिय अभिनेता द्वारा प्रचारित उत्पादों का उपयोग हम अनायास ही करने लगते हैं।
देखा जाए तो सुशांत द्वारा की गई सभी फिल्में समाज को कुछ न कुछ संदेश देतीं हैं।
एक सक्षम स्टार कलाकार के रूप में पहचान बनाने के बाद भी सुशांत ने ऐसी फिल्में चुनी हैं,जो मुनाफा कम और संदेश ज्यादा देती हैं।
निःसंदेह इन फिल्मों ने सुशांत सिंह राजपूत की बहुमुखी प्रतिभा और परिपक्वता को और निखारा है।
“सोनचिड़िया (Sonchiriya)” भी उन फिल्मों में से एक है।

एक स्वाभिमानी इंसान का बागी बनने का कारण कुछ भी हो सकता है। पर वह बागी धीरे-धीरे डाकू और हत्यारे में तब्दील होता जाता है।
और जब तक उसे इस बात का एहसास होता है। तब तक वह लौटने के दरवाजे बंद करके बहुत आगे निकल चुका होता है।
अंततः सबको अपने किए गए अमानवीय ग़लतियों के बोझ से मुक्ति का मार्ग ढूंढना है।
सोनचिड़िया (Sonchiriya) में सुशांत सिंह राजपूत ने मनोज बाजपेई (मान सिंह), रणवीर शोरी(वकील सिंह)आशुतोष राणा( वीरेंद्र सिंह गुज्जर) और भूमि पेडणेकर ( इंदुमती तोमर) जैसे बेहतरीन कलाकारों के साथ काम किया।
इस फिल्म के सभी कलाकारों ने अपने किरदारों को जीया है। आपको लगेगा की चंबल के बिहड़ के अगर बागी होते होंगे तो ऐसे ही होते होंगे।
कभी-कभी आपको यह फूलन देवी पर बनी फिल्म बैंडिट क्वीन की कड़ी सी लगेगी।
पर यह कहानी उससे अलग है। हां, इसमें जात बिरादरी, अत्याचार और प्रतिकार से जुड़े प्रसंग आपको जरूर देखने को मिलेंगे।
मानसिंह के रूप में मनोज बाजपेई पूरी फिल्म में तो नहीं है, पर मानसिंह के किरदार को बागी लाखन ( सुशांत सिंह राजपूत) और उसके साथी हमेशा जीवंत रखते हैं।

बागियों के पीछे भागते-भागते पुलिस भी इतनी थक चुकी होती है की उन्हें इनका आत्मसमर्पण मंजूर नहीं होता। बागियों की मौत ही इन्हें संतुष्टि देती है।
बात यहां तक पहुंच जाती है कि पुलिस और बागी अलग-अलग जाति के हों तो उनकी जाति आधारित व्यक्तिगत दुश्मनी भी साफ दिखाई दे जाती है।
लाखन (सुशांत सिंह राजपूत) अपने बागियों के गैंग में भी एक एंग्री यंग मैन के कैरेक्टर में है।
वह बागियों के अनुशासन को निभाते हुए भी अपने आप को मानवीय संवेदना से अलग नहीं कर पाता है।
वह अपने सरदार मानसिंह के प्रति पूरी वफादारी निभाते हुए भी बागियों की पारंपरिक कूट नीतियों की कमियों को उजागर करता रहता है।
लाखन बार बार अपने बागी होने और बागी बनकर किए जाने वाले कृत्यों पर प्रश्न खड़े करता रहता है।
यह बात गुट के अधिकतर बागियों की सोच के बिल्कुल विरुद्ध था।
कहानीः

बागी मान सिंह के गैंग के अपने कायदे कानून हैं, अपने नियम हैं।
उसका गैंग महिलाओं की इज्जत करता है। और जो उसके रास्ते में नहीं आता, उससे उसकी कोई दुश्मनी नहीं।
खलीफा(बहादुर) बनने वालों को पहले से ही चेतावनी दे दी जाती है। पर मुखबिरी करने वालों की सजा, सिर्फ सजा-ए-मौत है।
सरदार मानसिंह और बागी लाखन सिंह बाकी बागियों से अलग, अपने किए गए गलतियों की पश्चाताप की बातें करते हैं।
फिर एक बड़े लूट की तैयारी में लग जाते हैं। किसी को भी नहीं मालूम कि मानसिंह अपनी मुक्ति की राह चुन रहा है।
“मानसिंह गुट” के पीछे पुलिस और दूसरे गैंग भी पड़े हुए हैं। मोटी लूट के लालच में मानसिंह मुखबिरी का शिकार होता है।
वह पुलिस (वीरेंद्र सिंह गुज्जर) के हाथों डकैती के दौरान मुठभेड़ में मारा जाता है। सरदार मान सिंह, लाखन सिंह को पहले ही उसे बचने की राह देकर जाता है।

घटनास्थल से बचकर निकलने के बाद बचे हुए बागियों में मानसिक बटवाड़ा हो चुका होता है।
बिहड़ में अपनी राह तलाशते गुट को, एक महिला (एक प्रताड़ित बच्ची के साथ) मिलती है।
महिला (इंदुमति) बताती है कि वह अपने ससुर को मारकर बिहड़ में भाग आई है और बच्ची को अस्पताल पहुंचाना है।
लाखन सिंह महिला और बच्ची (सोनचिड़िया) की जिम्मेदारी लेता है। पर गुट के आधे बागियों को यह फैसला मंजूर नहीं है।
इलाज के दौरान जब डॉक्टर को मालूम चलता है कि बच्ची दलित है, तो वह अपने क्लीनिक में उसका इलाज करने से इंकार कर देता है।
यहां भी कंपाउंडर मुखबिरी कर देता है। और क्लीनिक को पुलिस चारों ओर से घेर लेती है।
लाखन की सूझबूझ और बहादुरी की सहायता से बागी वहां से भी निकलने में सफल होते हैं।

खुद को मानसिंह गैंग का उत्तराधिकारी समझने वाला वकील सिंह को लगता है। कि, गैंग को मां के आशीर्वाद की जरूरत है।
बागी परंपरा के तहत, गैंग बलि चढ़ाने एक मंदिर में जाता है। जो प्रताड़ित महिला के गांव के नजदीक ही है।
यहां वकील सिंह गुट का एक बागी मुखबिरी करता है। और प्रताड़ित महिला के पति, ससुर का भाई और बालिग बेटे को लेकर मंदिर पहुंच जाता है।
वकील सिंह और उसका गैंग ठाकुरों का गैंग है। प्रताड़ित महिला इंदुमती तोमर और उसके परिवार वाले भी ठाकुर ही हैं।
नाबालिक बच्ची एक दलित है। और उसके साथ बार-बार इंदुमती के परिवार वाले कुकर्म करते हैं।
दलित बच्ची को बचाने के लिए ही ठाकुर इंदुमती अपने ससुर को मारकर, पति, ससुर के भाई और देवर से बगावत करके बिहड़ का रास्ता चुनती है।
वकील सिंह बच्ची को वापस करने के लिए तैयार है। पर लाखन सिंह इसका विरोध करता है।
अब यहां दोनों गुट एक दूसरे पर बंदूकें तान स्पष्ट रूप में अलग अलग हो जाते हैं। मुठभेड़ भी होती है।
दो जानें गंवाने के बाद, लाखन सिंह और उसके साथी इंदुमती और बच्ची को साथ लेकर निकल जाते हैं।

सफर के दौरान खाली वक्त में लाखन और इंदुमती के बीच संवाद होता है।
लाखनः यह लड़की कौन लगती है तुम्हारी ?
इंदुमतीः गांव का कचरा साफ करती थी, इसकी मां हैजे से मर गई। तब से यह मेरे साथ है, मेरे सिवा इसका अब कोई नहीं है।
फ्लैश बैकः

दीपावली का दिन है मानसिंह को खबर मिलती है कि उसके तीन साथियों को मारने वाला बालखंडिया गुज्जर अपने गांव में वापस आया है।
मानसिंह अपने पूरे गैंग के साथ गांव पर धावा बोलता है। वह बाल खंडिया गुज्जर को ढूंढते-ढूंढते वीरेंद्र सिंह गुर्जर( तत्कालीन दारोगा) के घर चला जाता है।
वहां बहुत भयानक गलती होती है। नरसंहार हो जाता है। इस घटना का सबसे ज्यादा असर मानसिंह और लखन सिंह की मानसिक स्थिति पर होता है।
तभी से मानसिंह और लाखन सिंह को प्रायश्चित की भूख खाए जा रही थी।
वीरेंद्र सिंह गुज्जर ( आशुतोष राणा) के घर के अंदर और बाहर यह नरसंहार होता है। जो अभी इंस्पेक्टर है।
वह मानसिंह और उसके गैंग के खात्मे पर उतारू है। उसके सर प्रतिकार का भूत सवार है। आत्मसमर्पण करवाने का ख्याल तो उसके जेहन में कभी आया भी नहीं।

लाखन सिंह (लखना) रात एक हथियार तस्कर के यहां गुजरता है। यहां भी काफी संघर्ष होता है इंदुमती कुकर्मी से खुद को बचाने में कामयाब रहती है।
लाखन यहां भी अपने एक साथी को खो देता है। और भी कई हत्याएं होती हैं।
पहले से ही लखना के सर पर कई हत्याओं का बोझ है। और अब उसके हाथ मशीन गन भी लग गई।
लाखन सिंह बीहड़ में भागते-भागते फुलिया (फूलन देवी) के गैंग से टकरा जाता है।
अब ठाकुर और मल्लाह के गैंग एक साथ मिलकर पुलिस का सामना कर रहे हैं।
दोनों तरफ के लोग ( बागी और पुलिस)ढेर हो रहे हैं। भागने के रास्ते बंद हैं। तभी वकील सिंह अपनी गैंग के साथ पहुंच जाता है।
पुलिस फोर्स पर दो तरफ से वार होता है। भागने का रास्ता निकलता है। पर वकील सिंह अंततः एक दलित बच्ची को बचाने के लिए अपनी जान की कुर्बानी दे मुक्त हो जाता है।

लाखन और इंदुमती, बच्ची ( सोन चिरैया) को लेकर हॉस्पिटल तक पहुंचने ही वाले हैं कि इंदुमती का बेटा अपने दादा की मौत का बदला चुकाने के लिए अपनी मां को ही मारने सामने से आ जाता है।
पर यहां एक और सच्चाई सामने आती है जो सब को हिला देने वाली है। लाखन इंदुमती के बेटे को बताता है कि वह अपने बाप का नहीं, अपने दादा का बेटा है।
काफी जद्दोजहद के बाद लाखन और इंदुमती बच्ची को लेकर बड़े अस्पताल में आखिरकार पहुंच ही जाते हैं।
इधर बच्ची सोन चिरैया हॉस्पिटल में दाखिल होती है, उधर लाखन अपनी मुक्ति लेता है।
मानसिंह और वकील सिंह पहले ही अपनी मुक्ति के रास्ते को चुन चुका होता है।
इधर लौटते वक्त, इंस्पेक्टर वीरेंद्र सिंह गुज्जर की उसके ठाकुर हवालदारों द्वारा ही उसकी हत्या कर दी जाती है।
फिल्म के कुछ प्रभावी डायलॉग्स्ः
“सरकारी गोली से कौन मरता है, लोग मरते हैं सरकारी वादों से।”
– बागी मान सिंह।
“गैंग से तो भाग लूंगा वकील, अपने आप से कैसे भागूंगा ?”
-बागी लाखन सिंह।
“रास्ते बदलने से श्राप नहीं बदलते, एक बार लग गया तो चुकाना ही पड़ेगा।”
– बागी मानसिंह।
“बागी होना पहले ऐंठ का काम लगता था, अब शर्म सी आती है।”
– बागी लाखन सिंह।
फूलन देवी और मधुमति के बीच एक संवाद होता है।
फूलन देवी ( मल्लाह): मेरे गैंग में भर्ती हो जा।
मधुमति तोमर (ठाकुर): मल्लाह का गैंग है ये, और मैं जात की ठाकुर?
फूलन देवी ( हंसते हुए): अभी भी बात तुम्हारी समझ में नहीं आई, ये ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया, शूद्र मर्दों के लिए होता है। औरतों की जात ही अलग होती है, जो सबसे परे है, और सबसे नीचे है। .
इस एक छोटी सी फिल्म में इतना कुछ है कि, कुछ लोगों को उतना समझने में जीवन गुजर जाए फिर भी शायद समझ ना आए।
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