गुलाबो सिताबो (Gulabo Sitabo) Movie Review

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बेगम और मिर्ज़ा
इस फिल्म में असली खिलाड़ी 85 साल की बेगम फातिमा है। हवेली प्रेम में उसने अपने से 15 साल छोटे “मिर्जा चुन्नन नवाब” से शादी की।
साल बीतते गए उम्र के साथ बेगम, मिर्जा और हवेली तीनों बुढे़ होते गए।
पर मिर्जा और बेगम का लालच हमेशा जवान रहा। बेगम हमेशा हवेली में “बेगम” की तरह ही रह रही है।
बुढउ मिर्जा जी, दोनों पैर कब्र में लटकाए, जर्जर हवेली पर बैठे हुए हैं।
मिर्जा की बेगम, मिर्जा से 15 साल बड़ी हैं। और फुल एटीट्यूड के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रही है।
मिर्जा के काम धंधे का कुछ पता नहीं। तो खर्चे चलाने के लिए , किरायेदारों को रखा गया।
हवेली की मरम्मत कभी नहीं की गई। इसी बहाने, किरायेदारों ने भी किराया बढ़ाकर नहीं दिया।
घर ( हवेली )चलाने के लिए जब किराया भी कम पड़ा, तो हवेली के साजो-सामान एक-एक करके बिकने लगे।

हवेली में बांके
जर्जर हवेली में कई कमरे हैं, और किराएदार भी। उनमें सबसे हाइलाइटेड किराएदार बांके (आयुष्मान खुराना) है। जो अपनी तीन बहनों और अपनी माता के साथ रह रहा है।
बांके छठी कक्षा से ही अपने पिता के साथ आटा चक्की की दुकान संभाल रहा है, उसकी पढ़ाई वहीं रुक गई थी। बाकी तीनों बहनों को पढ़ने का मौका मिला।
फिर भी अपनी सगी बहनों द्वारा , बांके (आयुष्मान खुराना) को बार-बार यह एहसास दिलाया जाता है। की, उसने अपनी पढ़ाई पूरी नहीं की।
बांके अपनी पिता के द्वारा दी गई जिम्मेदारियों को निभाते हुए एक गर्लफ्रेंड भी संभाल रहा है।

गुड्डो
बहनों में बड़ी गुड्डो, ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर में है, उसे एक नौकरी की तलाश है।
बोल्ड, फ्रैंक और जानकारी से लैस गुड्डो नौकरी पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है।
भाई के मना करने के बावजूद वह हवेली के मामलों में अपना दिमाग लड़ाती रहती है।
गुड्डो में और भी कई विशेषताएं हैं। जो आपको फिल्म देखने के बाद ही मालूम चलेंगीं।

पुरातत्व अधिकारी
सब ऐसे (जैसे तैसे ) ही चल रहा था। कि, एक दिन हवेली को पुरातत्व विभाग के एक अधिकारी की नजर लग गई। बात हाइलाइटेड हो गई।
मिर्जा को लगा कि, अब तो हवेली हाथ से गई। तब उसने हवेली बेचने का मन बनाया और एक दलाल (वकील) के चंगुल में फंसा।

चिड़िया चुग गई खेत
युवती फातिमा एक बार अपने प्रेमी के साथ भाग गई थी। बाद में उसकी शादी मिर्जा से हो गई। इन्हीं सब वाक्यों (घटनाओं) को लेकर ,कोई भी रिश्तेदार उनसे मिलने नहीं आता।
बुजुर्ग फातिमा बेगम के परिवार वाले मिर्जा से भी नफरत करते हैं। मिर्जा यह जानकर खुश होता है। क्योंकि, इसका फायदा मिर्जा को हवेली पर हक जमाने में मिलेगा।
इधर बांके, पुरातत्व विभाग वाले कर्मचारी से गठबंधन करके हवेली में अपने ठिकाने को सुनिश्चित करने के चक्कर में लगा हुआ है।
बेगम को इन सब बातों का अंदाजा नहीं था। फिर एक दिन सुबह उसने अपनी उंगलियों पर स्टांप पैड की स्याही लगी देखी।
उसे माजरा समझते देर नहीं लगी। फिर बेगम ने जो किया, वह किसी के भी अंदाज से परे निकला।
फातिमा बेगम जबरदस्त खिलाड़ी निकलीं। उसने अपने एक ही चाल से सारी योजनाओं पर पानी फेर दिया।
फातिमा बेगम के श़ौहर मिर्जा और बांके के साथ जो हुआ, वह दर्शकों के लिए अप्रत्याशित है।
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